दो पल उस जमाने के










हिन्दी कविता दो पल उस जमाने के

हिन्दी कविता दो पल उस जमाने के

कागज वाली नाव मे सपने थे दूर जाने के
एक ये दौर है जो ढूंढता है बहाने
बचपन पास आने के
एक ये दौर है जो ढूंढता है
दो पल उस जमाने के

साइकिल के दो पहीयों पर
कितनी ही सवारी थी
शौर मचाते हम नहीं
वो हंसती सी यारी थी
आंखों में अरमान थे
सपनों का महल सजाने के
एक ये दौर है जो ढूंढता है
दो पल उस जमाने के








रास्तों से जीत कर
मंजिल करीब लाने के
ये दौर ढूंढता है पल
फिर उसी राह ठीकाने के
एक ये दौर है जो ढूंढता है
दो पल उस जमाने के

झूम के बादल गाते थे
राग बूलंदीयां पाने के
एक ये दौर है जो ढूंढता है कण
उसी मिट्टी में मिल जाने के
एक ये दौर है जो ढूंढता है
दो पल उस जमाने के

हर कोने से हंसी खिलती थी
उस दौर के जमाने में
गाता था कोई राही गीत
झूमकर सावन पाने में
एक ये दौर है जो सुखता है
किसी रेत का कण भीगाने में
एक ये दौर है जो ढूंढता है
दो पल उस जमाने के

एक ये दौर है जो ढूंढता है
दो पल उस जमाने के

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